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कहने को तो साल बदलता है ।
नही कहीं कोई हाल बदलता है।
है सूरज आज भी कल जैसा ,
नही भोर का उजाल बदलता है ।
चल रहा है सब कुछ बेसा ही,
न कोई दिल मलाल बदलता है ।
चल रही है परेशां ज़िंदगी सुकूँ से,
नही कही कोई बे-हाल बदलता है ।
चलते चलो आज भी सफर पर,
उम्मीद का न ये निहाल बदलता है ।
आयेगा उजाला स्याह काट कर,
न "निश्चल" का ये ख़्याल बदलता है ।
....विवेक"निश्चल"@..
डायरी 7
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