शनिवार, 13 फ़रवरी 2021

मुक्तक 947/51

 947

जिंदगी जीने की कहानी है ।

क्यूँ कहें दुनियाँ दीवानी है ।

होता किस्सा पूरा चलते चलते,

शेष बचती बस एक निशानी है ।

...."निश्चल"@...

948

कब किसे कहाँ तक जाना है ।

साथ चलना तो एक बहाना है ।

नाचती है रूह इशारे पे रब के ,

ये दुनियाँ तो एक बुतखाना है ।

...विवेक दुबे"निश्चल"@...

949

विश्वास जो बार बार करते रहे ।

स्वयं स्वयं पर वो वार करते रहे ।

कुछ दस्तूर निभाने की ख़ातिर ,

जीत को अपनी हार करते रहे ।

...."निश्चल"@...

950

हो गये गैर अपने गैर की ख़ातिर ,

अपने कभी मग़र भुलाये न गये ।

सह गये हर चोट अदब से हम ,

ज़ख्म"निश्चल"कभी दिखाये न गये ।

...."निश्चल"@...

951

ठहर गया हूँ मैं वक़्त के गुजर जाने को ।

सिमेटकर आज को कल बेहतर बनाने को ।

है आदम सा ही वक़्त का मिज़ाज ,

बदलता है वक़्त भी खुद बदल जाने को ।

...."निश्चल"@...

डायरी 7

Blogpost14/2/21

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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