947
जिंदगी जीने की कहानी है ।
क्यूँ कहें दुनियाँ दीवानी है ।
होता किस्सा पूरा चलते चलते,
शेष बचती बस एक निशानी है ।
...."निश्चल"@...
948
कब किसे कहाँ तक जाना है ।
साथ चलना तो एक बहाना है ।
नाचती है रूह इशारे पे रब के ,
ये दुनियाँ तो एक बुतखाना है ।
...विवेक दुबे"निश्चल"@...
949
विश्वास जो बार बार करते रहे ।
स्वयं स्वयं पर वो वार करते रहे ।
कुछ दस्तूर निभाने की ख़ातिर ,
जीत को अपनी हार करते रहे ।
...."निश्चल"@...
950
हो गये गैर अपने गैर की ख़ातिर ,
अपने कभी मग़र भुलाये न गये ।
सह गये हर चोट अदब से हम ,
ज़ख्म"निश्चल"कभी दिखाये न गये ।
...."निश्चल"@...
951
ठहर गया हूँ मैं वक़्त के गुजर जाने को ।
सिमेटकर आज को कल बेहतर बनाने को ।
है आदम सा ही वक़्त का मिज़ाज ,
बदलता है वक़्त भी खुद बदल जाने को ।
...."निश्चल"@...
डायरी 7
Blogpost14/2/21
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