911
के है कोई जो जाग रहा है ।
आशाओं से तम काट रहा है ।
मौन रहा क्यों क्षण भर को भी,
अंतर्मन मन को डांट रहा है ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@....
912
हो गये गुनाह फिर कुछ ।
सो गये बे-गुनाह फिर कुछ ।
चकाचौंध दिन उजियारो में ,
स्याह लिये पनाह फिर कुछ ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@..
913
खनकती रही ये जिंदगी ,
पग घुँघरू बाँधे पायल सी ।
टूटते रहे घुँघरू आशाओं के ,
करती रही मन घायल सी ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@...
914
ज़िंदगी के कुछ समझौते ।
कुछ समझौतों की ज़िंदगी ।
न पाया ब-ख़ुदा ख़ुदा उसमें ,
मैं करता रहा ताउम्र बंदगी ।
....."निश्चल"@...
915
ज़िंदगी हर घड़ी एक सवाल है ।
उलझे जबाबों का बवाल है ।
सामने है ख़ुशी भी खड़ी ,
उलझनों को नही ख़्याल है ।
...."निश्चल"@..
Blog post 11/2/21
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