गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021

मुक्तक911/915

 911

के है कोई जो जाग रहा है ।

आशाओं से तम काट रहा है ।

मौन रहा क्यों क्षण भर को भी,

अंतर्मन मन को डांट रहा है ।

....विवेक दुबे"निश्चल"@....

912

हो गये गुनाह फिर कुछ ।

सो गये बे-गुनाह फिर कुछ ।

चकाचौंध दिन उजियारो में ,

स्याह लिये पनाह फिर कुछ ।

....विवेक दुबे"निश्चल"@..

913

खनकती रही ये जिंदगी ,

पग घुँघरू बाँधे पायल सी ।

टूटते रहे घुँघरू आशाओं के ,

करती रही मन घायल सी ।

....विवेक दुबे"निश्चल"@...

914

ज़िंदगी के कुछ समझौते ।

कुछ समझौतों की ज़िंदगी ।

न पाया ब-ख़ुदा ख़ुदा उसमें ,

मैं करता रहा ताउम्र बंदगी ।

....."निश्चल"@...

915

ज़िंदगी हर घड़ी एक सवाल है ।

 उलझे जबाबों का बवाल है ।

सामने है ख़ुशी भी खड़ी ,

 उलझनों को नही ख़्याल है ।

...."निश्चल"@..

Blog post 11/2/21

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