मंगलवार, 9 फ़रवरी 2021

कुछ शेर

 194

जीवन तो एक आनंदोत्सव है ।

 समय से मिलता सबको सब है ।

..195

  तू क्यों चिंता करता है ।

 जब वो तेरी चिंता करता है।

....196

उसी उत्साह से तू फिर जुटना ।

चाहता है   तू   तुझे जितना ।

...197

ठंडक चाँद की तपिश घोलती है ।

क्यूँ बिन कहे निग़ाह बोलती है ।

....198

 हिचकिचाहट की भी आहट है।

     "निश्चल" यूँ मुझे इसकी आदत है।

...199

उम्र ज्यों पकती है,तन तपिश घटती है।

  हाँ इस पड़ाव पर, ठंड तो लगती है ।

...200

   उम्र पकती रही रौनकें घटती रहीं।

   तजुर्बा-ऐ-ताव में हयात तपती रही। 

         

हयात (जीवन ज़िंदगी)

...201

टूटते है सपने और बिखरते है ख़्वाब ।

भोर की आहट में जो जागते है आप ।

      ..."निश्चल"@...

202

"निश्चल"तदवीर से तक़दीर भी हारी है ।

हो होंसला तो तेरी ये दुनियाँ सारी है ।

...203

 सफ़ा सफ़ा जिंदगी मैं स्याह कर गया ।

 मैं अपने आपको यूँ गुमराह कर गया ।

    ...204

जिसने मेरा अहसान पाया कभी ।

हाँ वो मेरे काम न आया कभी ।

....205

बीता दिन अपना कल की फ़िकरों में ।

छूटा गया आज हम से ही जिकरों में ।

  ....206

 ऐ विवेक सोचता है तू क्यों कुछ ।

 सोच रखा है जब उसने सब कुछ ।

        .. 207

 रिश्ते तो अब मजबूरी है। 

दिल से दिल की दूरी है ।

..208

 बिखेरकर अपने आप को ,सिमेटता गया ।

नम निगाहों से जिंदगी तुझे मैं देखता गया ।

....209

 नम निगाहों से इश्क की तमिरदारी कर लेते है ।

कुछ यूँ खुद से खुद की हम यारी कर लेते है ।

....210

नादानियां कुछ उम्र की उम्र भर चलती रही ।

चाँदनी सँग चाँद के फिर भी चलती रही ।

.....211

किस्मत वक़्त पर सबको आवाज देती है ।

चलना हमे है साथ किसके अहसास देती है ।

....212


ये उम्र एक मुक़ाम खोजती सी ।

ज़िंदगी का पयाम खोजती सी ।

.....

213

मोहलत न मिली वक़्त से मोहब्बत के वास्ते ।

तय होते रहे यूँ तन्हा तन्हा जिंदगी के रास्ते ।

214

कुछ पूछ कर सवाल, 

वज्म महफ़िल के सामने ,

"निश्चल"साहिल से , 

समंदर के न हालात पूछिये ।

....

 215

लहरों से ही जिसकी ,

 भींगते जो किनारे रहे ।

 निग़ाह लिए आस की ,

 साथ वो बे-सहारे रहे ।

.....विवेक दुबे"निश्चल"@....

216

जिंदगी तो लौट कर फिर आती है ।

खुशियों को नज़र क्यों लग जाती है ।

217

वक़्त कुछ इस तरह गुजरता रहा ।

 वक़्त से वक़्त बे-असर सा रहा ।

..218

मुझे सराहा नहीं कभी संवारा नहीं ।  

 तुझे ज़िंदगी इश्क़ मेरा गवारा नही । 

 ....

219

ना कर तज़किरा तू रंज-ओ-मलाल पर ।

छोड़ वक़्त को तू   वक़्त के ही हाल पर ।

...220

वो चाहतों की चाहत, ना रही कोई मलालत ।

खोजतीं रहीं निगाह मेरी नज़्म-ए-ज़लालत ।... 

221

हुनर वो नही जो लेना जाने ।

हुनर वो है जो देना जाने ।

222

भीड़ बहुत थी पास मेरे मुस्कुराने बालों की ।

मेरी हर शिकस्त पर जश्न मनाने बालों की।

223

कवि देखता दुनियाँ को दुनियाँ की नजर से।

 दुनियाँ देखती कवि को बस अपनी नजर से ।

224

यह नसीब भी आदत बदलता रहा ।

बदल बदल कर साथ चलता रहा ।

.... 225

मुक़ाम की तलाश को तलाशता रहा ।

वो हर दम हारते से हालात सा रहा ।

... 226

अपने आप से यूँ भी सौदा रहा।

ज़िन्दगी का यूँ भी मसौदा रहा।

....227

 अपने ही आप को ढालता रहा ।

 ज़ज्ब जज्बात को पालता रहा ।

..228

   सच में झूठ का साथ देता राह ।

  कुछ यूँ सच का साथ देता रहा  ।

...229

मेरे फ़लसफ़े का भी सफ़ा होता ।

मुंसिफ मुझसे यूँ ना ख़फ़ा होता ।

...230

चलती ही रही कशमकश बड़ी ।

जिंदगी साथ जिंदगी के यूँ खड़ी ।

.... 231

उसे जिंदगी से मोहलत नही मिली ।

मुझे जिंदगी से तोहमत यही मिली ।

....232

उसे जिंदगी से मोहलत यदि मिलती ।

मुझे जिंदगी से तोहमत नही मिलती ।

 ....233

झूँठ नही तनिक भी, है यही सही ।

जिसे कहा सही, है वही नही सही ।

..234

आँख बंद करने से अंधेरा घटता नहीं ।

आता भोर का सबेरा अंधेरा टिकता नही ।

.... 235

जागता रहा , कुछ हम राज सा रहा ।

 छूटता किनारा , दरिया साथ सा बहा ।

....236

बुझना बुझदिली , जलना मुहाल सा रहा ।

तूफ़ान के दिये सा,  ही मेरा हाल सा रहा ।

...237

सिखाता वक़्त , हालात से हरदम रहा ।

हारता  इंसान , ज़ज्बात से हरदम रहा ।

...238

तोड़ न पाईं होंसले,  वो मुश्किलें भी ,

सँग छालों के , पाँव सफर करता रहा ।

...239

कौन है अपना , अब किसे कहूँ नाख़ुदा ,

लूटने का काम , जब रहबर करता रहा ।

...240

दिन उजलों से टले , रातें अंधेरी साथ सी ।

चलते रहे सफ़र पर, बस हसरतें हाथ सी ।

विवेक दुबे"निश्चल"@..

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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