952
हो गई कुर्वान जिंदगी ,
जिस पर बड़ी शान से ।
कर गया दूर वो ही मुझे,
आज अपनी पहचान से ।
बयां कर कामयावी अपनी,
गैरो की महफ़िल में ,
कह गया सच्चाई ,
जिंदगी की वो ईमान से ।
....विवेक दुबे "निश्चल"@....
953
मुस्कुराते रहे वो एक झूँठ के सहारे ।
और उम्र के मुक़ाम पे न मिले सहारे ।
कर गई गिला जिंदगी ही जिंदगी से ,
चलती रही जिंदगी इस तरह बे-सहारे ।
...."निश्चल"@...
954
एक ख़्वाब ख्याल से आगे ।
मिला निगाह मलाल से आगे ।
दे रुसवाईयाँ अपनी तन्हाई को,
चल पड़ा वो निहाल से आगे ।
.....विवेक दुबे"निश्चल"@..
955
एक अश्क़ समंदर सा ।
छलका हालातों के अंदर सा ।
मचला पलकों की कोर में,
लेकर उम्मीदों के मंजर सा ।
....."विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 7
Blogpost 14/2/21
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