शनिवार, 13 फ़रवरी 2021

मुक्तक 952/55

 952

हो गई कुर्वान जिंदगी ,

जिस पर बड़ी शान से ।

कर गया दूर वो ही मुझे,

आज अपनी पहचान से ।

बयां कर कामयावी अपनी,

 गैरो की महफ़िल में ,

कह गया सच्चाई ,

जिंदगी की वो ईमान से ।

....विवेक दुबे "निश्चल"@....

953

मुस्कुराते रहे वो एक झूँठ के सहारे ।

और उम्र के मुक़ाम पे न मिले सहारे ।

कर गई गिला जिंदगी ही जिंदगी से ,

चलती रही जिंदगी इस तरह बे-सहारे ।

...."निश्चल"@...

954

एक ख़्वाब ख्याल से आगे ।

मिला निगाह मलाल से आगे ।

दे रुसवाईयाँ अपनी तन्हाई को,

चल पड़ा वो निहाल से आगे ।

.....विवेक दुबे"निश्चल"@..

955

  एक अश्क़ समंदर सा ।

 छलका हालातों के अंदर सा ।

 मचला पलकों की कोर में,

 लेकर उम्मीदों के मंजर सा । 

  ....."विवेक दुबे"निश्चल"@..

डायरी 7

Blogpost 14/2/21

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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