छूट गए थे जो वक़्त की राहों में ।
मिल बैठे वो वक़्त के चैराहों पे ।
तारे चमके जग मग अँधियारों में ,
चन्दा डूबा भोर संग उजियारों में ।
देखो रात चाँदनी सोई कैसे,
अब सूरज की तपती बाहों में ।
सूरज भी डूब चला है अब ,
शान्त निशा की छाँओं में ।
खोज रहा ज़ीवन जिसको ,
मिलता वो ज़ीवन की राहों में ।
साथ निशा के बस चलता जा ,
उजियारे मिलते तम की आहों में ।
छूट गए थे जो वक़्त की राहों में ।
.......विवेक दुबे" निश्चल"@....
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