शनिवार, 30 सितंबर 2017

वक़्त की राहें

छूट गए थे जो वक़्त की राहों में ।
 मिल बैठे वो वक़्त के चैराहों पे ।

 तारे चमके जग मग अँधियारों में ,
 चन्दा डूबा भोर संग उजियारों में ।

 देखो रात चाँदनी सोई कैसे,
 अब सूरज की तपती बाहों में ।

 सूरज भी डूब चला है अब ,
 शान्त निशा की छाँओं में ।

 खोज रहा ज़ीवन जिसको ,
 मिलता वो ज़ीवन की राहों में ।

 साथ निशा के बस चलता जा ,
 उजियारे मिलते तम की आहों में ।

 छूट गए थे जो वक़्त की राहों में  ।

  .......विवेक दुबे" निश्चल"@....

कोई टिप्पणी नहीं:

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...