गुरुवार, 28 सितंबर 2017

माँ


               *माँ*


     *माँ तो नाम निराला है* ।
     *माँ ही जग उजियारा है* ।
     *माँ ही भक्ति माँ ही शक्ति*,
     *माँ ने ही जन्म सँवारा है* ।


*क्या माँगूं मैं माँ तुमसे* ।
*बिन माँगे मिलता तुमसे* ।
 *शीश झुका तेरे चरणन में*,
 *अभय दान मिलता तुमसे* ।



प्रमाण न देह का न जान का ।
 प्रमाण पिता न भगवान का ।
  प्रमाण बस उस एक जान का।
  जना जिसने अपनी जान सा ।

      वह बस  माँ और माँ

  जननी जो जनती अपनी कोख से।
  आए नही हम किसी और लोक से।
  .

दूर अंधकार को दिनकर का  प्रकाश हो ।
 दूर हो तिमिर तारों से जगमग आकाश हो।
 माता तुमसे हर मानव की यही अरदास हो ।
 ऐसा यह पावन नवरात्रि का त्यौहार हो ।
  .
 जिससे ऋतु चलतीं मौसम चलता ।
 नव सृजन सा प्रकृति क्रम चलता ।
 करें प्रथम आवाहन उस शक्ति का ,
 जिससे सकल ब्रह्मांड निकलता ।






  ..... *विवेक दुबे* ©....
25/9/2017

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