*माँ*
*माँ तो नाम निराला है* ।
*माँ ही जग उजियारा है* ।
*माँ ही भक्ति माँ ही शक्ति*,
*माँ ने ही जन्म सँवारा है* ।
*क्या माँगूं मैं माँ तुमसे* ।
*बिन माँगे मिलता तुमसे* ।
*शीश झुका तेरे चरणन में*,
*अभय दान मिलता तुमसे* ।
प्रमाण न देह का न जान का ।
प्रमाण पिता न भगवान का ।
प्रमाण बस उस एक जान का।
जना जिसने अपनी जान सा ।
वह बस माँ और माँ
जननी जो जनती अपनी कोख से।
आए नही हम किसी और लोक से।
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दूर अंधकार को दिनकर का प्रकाश हो ।
दूर हो तिमिर तारों से जगमग आकाश हो।
माता तुमसे हर मानव की यही अरदास हो ।
ऐसा यह पावन नवरात्रि का त्यौहार हो ।
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जिससे ऋतु चलतीं मौसम चलता ।
नव सृजन सा प्रकृति क्रम चलता ।
करें प्रथम आवाहन उस शक्ति का ,
जिससे सकल ब्रह्मांड निकलता ।
..... *विवेक दुबे* ©....
25/9/2017
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