गुरुवार, 28 सितंबर 2017

माँ


ममता जब जब जागी थी ।
 माता की टपकी छाती थी ।
 दे शीतल छांया आँचल की ,
 माता सारी रात जागी थी ।

  देख अपलक निगाहों से ,
  गंगा यमुना अबतारी थी ।
  स्तब्ध श्वास थी साँसों में ,
  अपनी श्वासों से हरी थी ।

   ..... विवेक दुबे ......©




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