गुरुवार, 28 सितंबर 2017

पाखंड


वादियाँ वीरान हैं ।
 मच रहा घमासान है ।
 इंसान के भेष में,
 आया शैतान है ।

 मानवता परेशान है ।
 खामोश इंसान है ।
 छल बल के दाम पे,
 बिक रहा ईमान है ।

 पाखंड बलवान है ।
 साधू ही हैवान है ।
 लुटता लाज श्रद्धा की,
 हर्ता मान के प्राण है।

  देखकर सब कुछ ,
  चुप है विधाता भी।
 शायद कलयुग का,
  उसे भी भान है ।

 .....विवेक दुबे©......

कोई टिप्पणी नहीं:

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...