यह राज न जाने हैं ऐसे कैसे ।
कोई न जान सका है ऐसे कैसे ।
इस पड़ाव से उस पड़ाव तक,
मानव तू आ पहुँचा ऐसे कैसे ।
चलता था तू तो बस ,
अपनी आशाओं को ले के ।
हार गया पर तू तो ,
अपनी इच्छाओं को ले के।
जीत सका न अब तक तू ,
देता आया उस शक्ति को धोखे।
नाप लिए चन्दा सूरज तूने ,
जाएँ न पर तुझसे रोके से रोके ।
राज यह न जाने हैं ऐसे कैसे ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@..
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