अपनी बुराइयों को हर वर्ष नापते हम ।
उसी हिसाब से रावण को देते ऊंचाई हम ।
बढ़ती ही रहतीं है हर वर्ष बुराइयाँ हमारी,
फिर कैसे कर पाएं ऊंचाई रावण की कम ।
ज्यों ज्यों घटें बुराइयाँ मानव की ।
त्यों त्यों हो जाये रावण भी कम ।
करता नही मग़र कोई राम से कर्म ।
करते हैं हर वर्ष यह बातें आप हम ।
....विवेक दुबे©...
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