-------- विजय दशमी की मंगल बधाई सहित ------
छाया अधर्म का अंधकार था।
धरा पर बढ़ा बहुत भार था।
आए तब श्री हरि धरा पर,
लिया मनुज अवतार था ।
जीतकर। आसुरी शक्ति को,
दानवता का किया विनाश था।
सुखाया उसकी नाभि को ,
जिसका अमृत आधार था ।
वेशक वो रावण था महा ज्ञानी ,
पर वो रावण था अभिमानी ।
समझाया भ्रात विभीषण ने,
भार्या मन्दोदरी की भी न मानी।
हुआ बिनाश उसके समूलकुल का,
कैसा था वो अभिमानी ज्ञानी ।
अभिमान का हश्र यही देती सन्देश,
रावण वध की यही कहानी ।
....... विवेक दुबे ©....
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