मुखरित अविरल धाराएँ ,
आज हिमालय की ।
टूट रहीं हैं मर्यादाएं ,
अब मदिरालय सी।
खंडित आज हिमालय,
विस्मृत जल धाराएँ हैं ।
जीवन की ख़ातिर जीवन को,
आज भुलाएँ है ।
दृश्य तम नभ व्योम सी ,
रिक्त पड़ी अभिलाषाएं है ।
स्तब्ध श्वांस बस प्राणों में ,
रक्त हीन सी हुई शिराएँ है ।
ढलते दिनकर सी ,
क्षितिज तले अब आशाएँ है ।
भोर नही अब दूर तलक ,
गहन निशा बाँह फैलाए है ।
दिनकर के ही उजियारों में ,
दिनकर के ही अब साए है ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
Blog post 31/7/18
आज हिमालय की ।
टूट रहीं हैं मर्यादाएं ,
अब मदिरालय सी।
खंडित आज हिमालय,
विस्मृत जल धाराएँ हैं ।
जीवन की ख़ातिर जीवन को,
आज भुलाएँ है ।
दृश्य तम नभ व्योम सी ,
रिक्त पड़ी अभिलाषाएं है ।
स्तब्ध श्वांस बस प्राणों में ,
रक्त हीन सी हुई शिराएँ है ।
ढलते दिनकर सी ,
क्षितिज तले अब आशाएँ है ।
भोर नही अब दूर तलक ,
गहन निशा बाँह फैलाए है ।
दिनकर के ही उजियारों में ,
दिनकर के ही अब साए है ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
Blog post 31/7/18
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