मंगलवार, 31 जुलाई 2018

शेर

ना कर तज़किरा तू ,
 रंज-ओ-मलाल पर ।
छोड़ वक़्त को तू
  वक़्त के ही हाल पर ।
...
वो चाहतों की चाहत,
ना रही कोई मलालत ।
खोजतीं रहीं निगाह ,
मेरी नज़्म-ए-ज़लालत ।
....
मैं लिखता चला निग़ाह से ।
 जीत ना सका अपनी चाह से ।
 होता रहा ग़ुम लफ्ज़ लफ्ज़ ,
 गिरते रहे जो क़तरे निग़ाह से ।

विवेक दुबे"निश्चल"@..

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