चलता मैं जिस पथ पर ।
एकाकी मैं उस पथ पर ।
नही कहीं विश्राम कोई ,
संग्रामों से इस पथ पर ।
चलता मैं अथक निरंतर ,
जीवन के इस पथ पर ।
दीप्त रहीं कुछ आशाएँ ,
मुड़ते जुड़ते हर पथ पर ।
कुछ कंटक रहो पर भी ,
पुष्प खिले मोद निरंतर ।
तब तम साँझ ढ़ले भी ,
अहसास बना दिनकर ।
चलता मैं तम से तम तक ,
तम हरता रहा दिवाकर ।
अजित रहा जीवन पुष्कर ,
चलता मैं जीवन पथ पर ।
चलता मैं जिस पथ पर ।
एकाकी मैं उस पथ पर ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
Blog post 29/7/18
डायरी 5(311
एकाकी मैं उस पथ पर ।
नही कहीं विश्राम कोई ,
संग्रामों से इस पथ पर ।
चलता मैं अथक निरंतर ,
जीवन के इस पथ पर ।
दीप्त रहीं कुछ आशाएँ ,
मुड़ते जुड़ते हर पथ पर ।
कुछ कंटक रहो पर भी ,
पुष्प खिले मोद निरंतर ।
तब तम साँझ ढ़ले भी ,
अहसास बना दिनकर ।
चलता मैं तम से तम तक ,
तम हरता रहा दिवाकर ।
अजित रहा जीवन पुष्कर ,
चलता मैं जीवन पथ पर ।
चलता मैं जिस पथ पर ।
एकाकी मैं उस पथ पर ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
Blog post 29/7/18
डायरी 5(311
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