मंगलवार, 31 जुलाई 2018

दोहे

रात अंधेरी आज की ,बादल बिजुरी होय ।
राह निहारे आस से , पिया बिसारे मोय ।

प्रियतम नही पास में , मन में गहरी पीर ।
पिया मिलन की आस में ,प्रिया होत अधीर ।


बात सुनाता आपनी , कहता अपनी बात ।
हर पतझड़ के बाद में ,आते नव तरु पात ।

डूबत रवि साँझ सँग,छोड़ धवल प्रकाश ।
नव प्रभा की आस में ,रिक्त रहे आकाश ।
...
बादल बरसी बादली , नीर नीर धरा होय ।
सागर फिर भी ना भरे,सरिता सागर खोय ।

बांट लई सारी धरा , अम्बर न बंटा जाए ।
मानव स्वार्थ से भरा , धरा रही थर्राए ।

रीत नही मन आज तो ,रही न कोई प्रीत ।
जग जीतेगा बाद में , पहले खुद को जीत ।
...
थम गई क्यों रात भी , होत नही अब भोर ।
दिनकर अब कब आएगा , कलरब होगा शोर ।
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 मोल नही अब जान का , रहा नही अब मोल ।
 संकट है एक प्राण का , संकट की नही तोल ।

पद मिले एक लाभ का ,पेट गला भर जाए ।
घर बैठे ही आप से , धन वर्षा हो जाए ।

 राज कोई ऐसा नही ,न रंक हो न फ़क़ीर ।
 बाँटे दोनों हाथ से ,   मिटत न कोई पीर ।


रूठे थे जो बादरा , भर लाये अब नीर ।
 पुलकित मानस मन भयो ,मिटी धरा की पीर ।

 ताल सरोवर भर रहे , चल उठे जल प्रपात ।
 हर्षित मन वसुधा हुआ ,सजी दुल्हन सी आज ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@..


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