481
संग सा बना सँग आज,
वक़्त के तक़ाज़े से ।
देखता हर शख़्स मुझे ,
न देखने के इरादे से ।
.. 482
दर्द मैं बयां करता कैसे ।
जुदा दिल से करता कैसे ।
थे संग वो मेरे अपने ही ,
उन्हें मैं बुत करता कैसे ।
....483
हसरतों के बाजारों में ।
उलफ़्तों के चौराहों में ।
लुटती रही अना ,
उम्र के दोराहों में ।
..484
बा-मोल मैं बे-मोल रहा ।
इतना ही मेरा तोल रहा ।
लगता ही रहा भाब मेरा ,
जुबां जुबां मेरा बोल रहा ।
....
485
पुकार तेरी सुन न सका वो ,
ख़यालो में तेरे खोया था वो ।
टूटकर किनारों से वो कोई ,
एक दरिया सा बहा था वो ।
....
486
पुकारता रहा एक चमन वीरानों से ।
ग़ुम हुआ क्यूं वो आज पहचानों से ।
एक हस्ती रही हरदम ही जिसकी ,
खोजता मंज़िल अपनी अपने निशानों से ।
.....
487
एक लफ्ज़ वो लिखेगा कभी ।
एक लफ्ज़ मैं लिखूंगा कभी ।
जोड़कर मैं लफ्ज़ लफ्ज़ से ,
एक नज़्म कहूँगा फिर कभी ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 5
Blog post 1/8/18
संग सा बना सँग आज,
वक़्त के तक़ाज़े से ।
देखता हर शख़्स मुझे ,
न देखने के इरादे से ।
.. 482
दर्द मैं बयां करता कैसे ।
जुदा दिल से करता कैसे ।
थे संग वो मेरे अपने ही ,
उन्हें मैं बुत करता कैसे ।
....483
हसरतों के बाजारों में ।
उलफ़्तों के चौराहों में ।
लुटती रही अना ,
उम्र के दोराहों में ।
..484
बा-मोल मैं बे-मोल रहा ।
इतना ही मेरा तोल रहा ।
लगता ही रहा भाब मेरा ,
जुबां जुबां मेरा बोल रहा ।
....
485
पुकार तेरी सुन न सका वो ,
ख़यालो में तेरे खोया था वो ।
टूटकर किनारों से वो कोई ,
एक दरिया सा बहा था वो ।
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486
पुकारता रहा एक चमन वीरानों से ।
ग़ुम हुआ क्यूं वो आज पहचानों से ।
एक हस्ती रही हरदम ही जिसकी ,
खोजता मंज़िल अपनी अपने निशानों से ।
.....
487
एक लफ्ज़ वो लिखेगा कभी ।
एक लफ्ज़ मैं लिखूंगा कभी ।
जोड़कर मैं लफ्ज़ लफ्ज़ से ,
एक नज़्म कहूँगा फिर कभी ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 5
Blog post 1/8/18
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