बुधवार, 1 अगस्त 2018

मुक्तक

488
सत्य को प्रमाण नही ।
झूठ को इनाम नही ।
निज भाव चलतीं ,
राहों को विश्राम नही ।
489
वो नही कोई गैर था ।
अपनो से ही बैर था ।
 रूठता था मनाने को ,
 चाहतों का  यही फेर था ।
... 
490
जिंदगी तो लौट कर फिर आती है ।
खुशियों को नज़र क्यों लग जाती है ।
....
जुगलबंदी ऐसी ही होती है ।
 बात निग़ाहों से बयां होती है ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 4
Blog post 1/8/18

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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