लक्ष्य उसी ने बस पाया है ।
जो आगे आगे चल पाया है ।
देखो भोर मुहाने पर ,
दिनकर ही पहले आया है ।
रजनी के दामन में छुपने से पहले ,
संध्या को भी ललचाया है ।
दिनकर ही पहले आया है ।
जो चँदा आता कुछ चलकर ,
सूरज का हम साया कहलाया है ।
लक्ष्य उसी ने बस पाया है ।
जो आगे आगे चल पाया है ।
पवन चली तरल बन के ,
खुशबू का झोंका आया है ।
वो फ़ूल बाद नजर आया है ।
लक्ष्य उसी ने बस पाया है ।
अंबर बून्द चली मिलने धरती को ,
रजः कण ने श्रृंगार उठाया है ।
गर्भ धरा ने तो फिर पाया है ।
लक्ष्य उसी ने बस पाया है ।
आगे आगे जो चल पाया है ।
ना सोच जरा तनिक विश्राम नही ,
दिनकर तो हर दिन ही आया है ।
ठहर नही चलता चल राहों पर ,
तूने खुद को क्यों बिसराया है ।
लक्ष्य उसी ने बस पाया है ।
जो आगे आगे चल पाया है ।
देखो भोर मुहाने पर ,
दिनकर ही पहले आया है ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
Blog post 1/8/18
डायरी 5(54)
जो आगे आगे चल पाया है ।
देखो भोर मुहाने पर ,
दिनकर ही पहले आया है ।
रजनी के दामन में छुपने से पहले ,
संध्या को भी ललचाया है ।
दिनकर ही पहले आया है ।
जो चँदा आता कुछ चलकर ,
सूरज का हम साया कहलाया है ।
लक्ष्य उसी ने बस पाया है ।
जो आगे आगे चल पाया है ।
पवन चली तरल बन के ,
खुशबू का झोंका आया है ।
वो फ़ूल बाद नजर आया है ।
लक्ष्य उसी ने बस पाया है ।
अंबर बून्द चली मिलने धरती को ,
रजः कण ने श्रृंगार उठाया है ।
गर्भ धरा ने तो फिर पाया है ।
लक्ष्य उसी ने बस पाया है ।
आगे आगे जो चल पाया है ।
ना सोच जरा तनिक विश्राम नही ,
दिनकर तो हर दिन ही आया है ।
ठहर नही चलता चल राहों पर ,
तूने खुद को क्यों बिसराया है ।
लक्ष्य उसी ने बस पाया है ।
जो आगे आगे चल पाया है ।
देखो भोर मुहाने पर ,
दिनकर ही पहले आया है ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
Blog post 1/8/18
डायरी 5(54)
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