पुष्प शाख पे जब आता है ।
कलम मन खिल जाता है ।
खिलते धीरे धीरे पुष्प कई ,
चमन गुलशन सज जाता है ।
खुश होता मन ही मन वो ,
बागवान अब मुस्काता है ।
सँग भँवरों की गुंजन के ,
गीत प्रीत के वो गाता है ।
छूकर एक एक पुष्प लता को ,
देखो कितना वो इतराता है ।
पा प्रतिफ़ल अपने श्रम का ,
वो बागवान अब कहलाता है ।
पुष्प शाख पे जब आता है ।
कलम मन खिल जाता है ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
कलम मन खिल जाता है ।
खिलते धीरे धीरे पुष्प कई ,
चमन गुलशन सज जाता है ।
खुश होता मन ही मन वो ,
बागवान अब मुस्काता है ।
सँग भँवरों की गुंजन के ,
गीत प्रीत के वो गाता है ।
छूकर एक एक पुष्प लता को ,
देखो कितना वो इतराता है ।
पा प्रतिफ़ल अपने श्रम का ,
वो बागवान अब कहलाता है ।
पुष्प शाख पे जब आता है ।
कलम मन खिल जाता है ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें