शुक्रवार, 3 अगस्त 2018

कमल नम

पुष्प शाख पे जब आता है ।
  कलम मन खिल जाता है ।

  खिलते धीरे धीरे पुष्प कई ,
  चमन गुलशन सज जाता है ।

  खुश होता मन ही मन वो ,
  बागवान अब मुस्काता है ।

  सँग भँवरों की गुंजन के ,
  गीत प्रीत के वो गाता है ।

  छूकर एक एक पुष्प लता को ,
 देखो कितना वो इतराता है ।

पा प्रतिफ़ल अपने श्रम का ,
 वो बागवान अब कहलाता है ।

पुष्प शाख पे जब आता है ।
  कलम मन खिल जाता है ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....


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