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श्रृंगार हीन हुई थी माता ,
दंश झेलकर अपने ही गद्दारों के ।
प्रण ले लिया था उसने भी ,
मैं सहजूंगा माता के श्रृंगारों को ।
पाले था आज़ाद ख़यालों को ।
देख देख अलबेले मतवालों को ।
देख रहा था उसका बचपन भी ,
गलते मातृभूमि के घावों को ।
वचन निभाया प्रण प्राण से,
कफन बाँध आज़ादी के दीवानों का ।
आजाद रहा हूँ आजाद रहूँगा ,
ख़ौफ़ बना था वो गोरों का ।
देकर आहुति अपने प्राणों की ,
आज़ादी की यज्ञ हवि में ।
थकित पड़ी क्रांति ज्वाला में ,
वो भर गया जोश जवानों सा ।
मातृ भूमि की रक्षा में ,
खाकर गोली सीने पर ,
सींचा लहु देश प्रेम फुहारों सा ।
रंगा राष्ट्र राष्ट्र प्रेम के जज्बे से ,
काल बना जो उन गोरों का ।
निकल पड़ीं टोलियां गली गली,
नारा वन्दे मातरम् के घोषों का ।
भर आज नयन श्रद्धा जल ,
नमन करे कोटि कोटि जन ।
वो चंद्र सरीखा दमक रहा ,
शेखर बन माता के श्रृंगारों का ।
उठो नौजवानों आवाहन करो ।
दे माता की दुहाई आज उठो ।
उठे न कोई आँख माता के आँचल पर ।
आएँ न कोई छींटे माता के दामन पर ।
एक प्रण तुम भी प्राण भरो ।
शत्रु के सीने में बारूद भरो ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 5(19)
श्रृंगार हीन हुई थी माता ,
दंश झेलकर अपने ही गद्दारों के ।
प्रण ले लिया था उसने भी ,
मैं सहजूंगा माता के श्रृंगारों को ।
पाले था आज़ाद ख़यालों को ।
देख देख अलबेले मतवालों को ।
देख रहा था उसका बचपन भी ,
गलते मातृभूमि के घावों को ।
वचन निभाया प्रण प्राण से,
कफन बाँध आज़ादी के दीवानों का ।
आजाद रहा हूँ आजाद रहूँगा ,
ख़ौफ़ बना था वो गोरों का ।
देकर आहुति अपने प्राणों की ,
आज़ादी की यज्ञ हवि में ।
थकित पड़ी क्रांति ज्वाला में ,
वो भर गया जोश जवानों सा ।
मातृ भूमि की रक्षा में ,
खाकर गोली सीने पर ,
सींचा लहु देश प्रेम फुहारों सा ।
रंगा राष्ट्र राष्ट्र प्रेम के जज्बे से ,
काल बना जो उन गोरों का ।
निकल पड़ीं टोलियां गली गली,
नारा वन्दे मातरम् के घोषों का ।
भर आज नयन श्रद्धा जल ,
नमन करे कोटि कोटि जन ।
वो चंद्र सरीखा दमक रहा ,
शेखर बन माता के श्रृंगारों का ।
उठो नौजवानों आवाहन करो ।
दे माता की दुहाई आज उठो ।
उठे न कोई आँख माता के आँचल पर ।
आएँ न कोई छींटे माता के दामन पर ।
एक प्रण तुम भी प्राण भरो ।
शत्रु के सीने में बारूद भरो ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 5(19)
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