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आज़ाद वतन की आज़ादी में ।
आधी सी इस आवादी में ।
बैर धुले है मज़हब के ,
बंट गए कुछ जाति में ।
लुप्त हुए है यूँ सब ,
अपनी ही आजादी में ।
रंग उड़े उस गुलशन के ,
चलती गोली वादी में ।
ताल ठोकते कुछ ,
सत्ता के मैदानों में ।
जहर उगलते नित जो ,
नित नए बयानों में ।
रहा नही क्यों , देश प्रेम अब उनमें ,
सजे हुए जो , खादी के परिधानों में ।
लुप्त हुई आज़ादी ज्यों ,
आजाद भगत , गांधी के बलिदानों में ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 5(20)
आज़ाद वतन की आज़ादी में ।
आधी सी इस आवादी में ।
बैर धुले है मज़हब के ,
बंट गए कुछ जाति में ।
लुप्त हुए है यूँ सब ,
अपनी ही आजादी में ।
रंग उड़े उस गुलशन के ,
चलती गोली वादी में ।
ताल ठोकते कुछ ,
सत्ता के मैदानों में ।
जहर उगलते नित जो ,
नित नए बयानों में ।
रहा नही क्यों , देश प्रेम अब उनमें ,
सजे हुए जो , खादी के परिधानों में ।
लुप्त हुई आज़ादी ज्यों ,
आजाद भगत , गांधी के बलिदानों में ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 5(20)
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