ईंट पत्थर के मकानों से ।
मेरे होने के निशानों से ।
....
नही बोलता संग कोई ,
ये हालात है अंजानो से ।
....
गुजरता रहा लम्हा लम्हा ,
लफ्ज़ ख़ामोश मुकामों से ।
...
दर्ज होते रहे अल्फ़ाज़ ये ,
आग़ोश मेरे ही वीरानों से ।
...
लूटकर महफ़िल तिश्निगी ,
दबता राह यूँ अहसानों से ।
.....
कर उजागर अपने नाम को ,
हुआ रंज अपनी पहचानों से ।
.......
कहने को तो वो "निश्चल"
आज भी है मेरे दीवानों से ।
..... विवेक दुबे "निश्चल"@...
मेरे होने के निशानों से ।
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नही बोलता संग कोई ,
ये हालात है अंजानो से ।
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गुजरता रहा लम्हा लम्हा ,
लफ्ज़ ख़ामोश मुकामों से ।
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दर्ज होते रहे अल्फ़ाज़ ये ,
आग़ोश मेरे ही वीरानों से ।
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लूटकर महफ़िल तिश्निगी ,
दबता राह यूँ अहसानों से ।
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कर उजागर अपने नाम को ,
हुआ रंज अपनी पहचानों से ।
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कहने को तो वो "निश्चल"
आज भी है मेरे दीवानों से ।
..... विवेक दुबे "निश्चल"@...
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