एक रात सजी दुल्हन जैसी ,
अरमानों की चूनर ओढ़ी ।
चँचल चँदा होगा दामन में ,
झिलमिल तारे होंगे हम जोली ।
..
460
पढ़ता रहा मैं किताबों को ।
छानता रहा मैं अखबारों को ।
एक खबर में ढूंढता रहा कहीं ,
अपने शहर के उजियारों को ।
....
461
वो पर्त्-दर-पर्त् मुखोटे उतारते रहे ।
हम निग़ाह-दर-निग़ाह निहारते रहे ।
तलाशते रहे शराफत मुखोटों में ,
क्यों हमें शराफत के मुग़ालते रहे ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
अरमानों की चूनर ओढ़ी ।
चँचल चँदा होगा दामन में ,
झिलमिल तारे होंगे हम जोली ।
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पढ़ता रहा मैं किताबों को ।
छानता रहा मैं अखबारों को ।
एक खबर में ढूंढता रहा कहीं ,
अपने शहर के उजियारों को ।
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वो पर्त्-दर-पर्त् मुखोटे उतारते रहे ।
हम निग़ाह-दर-निग़ाह निहारते रहे ।
तलाशते रहे शराफत मुखोटों में ,
क्यों हमें शराफत के मुग़ालते रहे ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
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