शनिवार, 28 जुलाई 2018

ये वक़्त फिर

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  ये वक़्त फिर तुझे संवारेगा ।
  आसमां फिर तुझे पुकारेगा ।

चमकेगा फिर दिनकर बनकर,
अपने उजियारे फिर बिखारेगा ।

ना हारना होंसलों से कभी ,
एक दिन वक़्त तुझसे हारेगा ।

रात तो है बस रात भर की ,
भोर कल फिर असमां उजारेगा ।

डूबकर भी डूबता ना जो कोई ,
हांसिल है वो ही किनारे का ।

बहता रहा जो वो दरिया  ,
हुआ सागर के सहारे का ।

यह वक़्त फिर तुझे संवारेगा ।
  असमां फिर तुझे पुकारेगा ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 5(18)

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