429
ये वक़्त फिर तुझे संवारेगा ।
आसमां फिर तुझे पुकारेगा ।
चमकेगा फिर दिनकर बनकर,
अपने उजियारे फिर बिखारेगा ।
ना हारना होंसलों से कभी ,
एक दिन वक़्त तुझसे हारेगा ।
रात तो है बस रात भर की ,
भोर कल फिर असमां उजारेगा ।
डूबकर भी डूबता ना जो कोई ,
हांसिल है वो ही किनारे का ।
बहता रहा जो वो दरिया ,
हुआ सागर के सहारे का ।
यह वक़्त फिर तुझे संवारेगा ।
असमां फिर तुझे पुकारेगा ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 5(18)
ये वक़्त फिर तुझे संवारेगा ।
आसमां फिर तुझे पुकारेगा ।
चमकेगा फिर दिनकर बनकर,
अपने उजियारे फिर बिखारेगा ।
ना हारना होंसलों से कभी ,
एक दिन वक़्त तुझसे हारेगा ।
रात तो है बस रात भर की ,
भोर कल फिर असमां उजारेगा ।
डूबकर भी डूबता ना जो कोई ,
हांसिल है वो ही किनारे का ।
बहता रहा जो वो दरिया ,
हुआ सागर के सहारे का ।
यह वक़्त फिर तुझे संवारेगा ।
असमां फिर तुझे पुकारेगा ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 5(18)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें