गुरुवार, 26 जुलाई 2018

मुक्तक

*यमक* अलंकार कुछ मुक्तक

466/1...
ज़ीवन कुछ हिसाब पूछता है ।
हिसाब का हिसाब पूछता है ।
याद न रहे भाग हिसाब कभी , (बिभाजन)
"निश्चल" अपना भाग पूछता है । (भग्य)

467/2...

प्रयत्न की हार कहाँ ।(पराजय)
 प्रयास ही हार जहाँ ।(आभूषण)
 चलते जो राहों पर ,
 लक्ष्य प्रतिसाद वहाँ ।

468/3...

 साँझ ढ़ले तू आ जा चँदा ।
 तारों के सँग छा जा चँदा ।
 निहार कण बिखरा कर , (ओस)
 निहार मुझे  तू जा चँदा ।(देखना)

469/4...
रीत रही अब अनबन सी ।(परम्परा)
रीत रही अब टूटे बर्तन सी ।(रिक्त )
अपने ही स्वप्नों की ख़ातिर ,
रातें से ही अब अड़चन सी ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 3

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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