*यमक* अलंकार कुछ मुक्तक
466/1...
ज़ीवन कुछ हिसाब पूछता है ।
हिसाब का हिसाब पूछता है ।
याद न रहे भाग हिसाब कभी , (बिभाजन)
"निश्चल" अपना भाग पूछता है । (भग्य)
467/2...
प्रयत्न की हार कहाँ ।(पराजय)
प्रयास ही हार जहाँ ।(आभूषण)
चलते जो राहों पर ,
लक्ष्य प्रतिसाद वहाँ ।
468/3...
साँझ ढ़ले तू आ जा चँदा ।
तारों के सँग छा जा चँदा ।
निहार कण बिखरा कर , (ओस)
निहार मुझे तू जा चँदा ।(देखना)
469/4...
रीत रही अब अनबन सी ।(परम्परा)
रीत रही अब टूटे बर्तन सी ।(रिक्त )
अपने ही स्वप्नों की ख़ातिर ,
रातें से ही अब अड़चन सी ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 3
466/1...
ज़ीवन कुछ हिसाब पूछता है ।
हिसाब का हिसाब पूछता है ।
याद न रहे भाग हिसाब कभी , (बिभाजन)
"निश्चल" अपना भाग पूछता है । (भग्य)
467/2...
प्रयत्न की हार कहाँ ।(पराजय)
प्रयास ही हार जहाँ ।(आभूषण)
चलते जो राहों पर ,
लक्ष्य प्रतिसाद वहाँ ।
468/3...
साँझ ढ़ले तू आ जा चँदा ।
तारों के सँग छा जा चँदा ।
निहार कण बिखरा कर , (ओस)
निहार मुझे तू जा चँदा ।(देखना)
469/4...
रीत रही अब अनबन सी ।(परम्परा)
रीत रही अब टूटे बर्तन सी ।(रिक्त )
अपने ही स्वप्नों की ख़ातिर ,
रातें से ही अब अड़चन सी ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 3
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