यह अखवार हर दिन घर क्यों आता है ।
आता है आते ही आँखों में छा जाता है ।
फिर लुटी आबरू मासूम अबला की ,
बड़े बड़े लफ़्ज़ों में नजर आ जाता है ।
फिर कटे कुछ सर ,बिके कुछ फिर धड़ ,
सरमायेदार ख़ामोश नजर आता है ।
यह अखवार ....
टूट रहीं है छूट रही है डोरे जीवन की ,
ज़ीवन से ज़ीवन अब डरता जाता है ।
रिश्ते फटते अब रद्दी के कागज़ से ।
रिश्तों का रिश्तों से एक रात का नाता है ।
उजले से कोमल इस कागज़ पर ,
स्याह स्याही से स्याह स्याह छप जाता है ।
यह अखवार ....
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
Blog post 28/7/18
डायरी 5(21)
आता है आते ही आँखों में छा जाता है ।
फिर लुटी आबरू मासूम अबला की ,
बड़े बड़े लफ़्ज़ों में नजर आ जाता है ।
फिर कटे कुछ सर ,बिके कुछ फिर धड़ ,
सरमायेदार ख़ामोश नजर आता है ।
यह अखवार ....
टूट रहीं है छूट रही है डोरे जीवन की ,
ज़ीवन से ज़ीवन अब डरता जाता है ।
रिश्ते फटते अब रद्दी के कागज़ से ।
रिश्तों का रिश्तों से एक रात का नाता है ।
उजले से कोमल इस कागज़ पर ,
स्याह स्याही से स्याह स्याह छप जाता है ।
यह अखवार ....
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
Blog post 28/7/18
डायरी 5(21)
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