शुक्रवार, 22 दिसंबर 2017

कुछ ख्याल


ज़मीन बिछाता आसमां ओढ़ता मैं
इस तरह खुद को खुद से जोड़ता मैं
हसरतों को हक़ीक़त से तोड़ता मैं
 इस तरह खुद को खुद से जोड़ता मैं 
      ...विवेक...


ज़माने का रिवाज ,
बिगड़ा बिगड़ा है ।
देख सादगी हमारी ।
हर शख़्स हमसे ,
उखड़ा उखड़ा है ।
    ....विवेक....

उसका भी एक मिजाज़ है..
मेरा भी एक मिजाज़ है....
सूरज में भी आग है...
चाँद में भी दाग है... 
......विवेक....


शब्द लुटाता शब्द सजाता मैं ।

        लिखता बस लिखता जाता मैं ।

 खुद से खुद खुश हो जाता मैं ।

          खुद को खुद से झुठलाता मैं ।

 सच में कभी झूंठ सजाता मैं ।

         झूंठ कभी सच से बहलाता मैं ।

          .....विवेक....




कोई टिप्पणी नहीं:

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...