शुक्रवार, 22 दिसंबर 2017

राधिका


राधिका मन सी मैं प्यासी
बन कृष्ण सखा की दासी
रच जाऊं मन मे
बस जाऊं नैनन मे
मिल जाऊं धड़कन मे
 छा जाऊं चितवन मे
 न भेद रहे फिर कोई
 इस मन मे उस मन मे 
    ...विवेक...


1 टिप्पणी:

Dr. Rahul Shukla ने कहा…

वाहहहहह बेहतरीन सर्जन आ० विवेक जी,
राधिका मन की आस में नेह के मधुहास में,
सजनी सी सीखी जूझने की भाषा,
विवेक भी पा लिया प्रेम की प्यास में|
साहिल

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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