चेहरे ही बयां करते है,
इंसान के हुनर को ।
नजरें ही पढा करतीं हैं ,
हर एक नज़र को ।
क्यों इल्ज़ाम फिर लगाएँ ,
इस मासूम से ज़िगर को ।
दिल झेलता है फिर भी,
दर्द के हर कहर को ।
चेहरे ही बयां करते हैं ,
इंसान के हुनर को ।
शब्दों ही ,ने उलझाया ,
शब्दों के असर को ।
मिलें सब जिस नज़र में ,
कहाँ ढूंढे उस नज़र को ।
मासूमियत ने देखो ,
किया ख़त्म , हर असर को।
चेहरे ही बयां करते हैं ,
इंसान के हुनर को ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@...
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