शनिवार, 23 दिसंबर 2017

भूख की पीड़ा


विषय ... भूख की पीड़ा


1-
   वेदना उसकी बड़ी भारी थी ।
   भूख जिसकी एक लाचारी थी ।
   बीनता था जूठन वो बचपन , 
   और निगाहें उसकी आभारी थीं ।

2-
 भूख दौलत की बढ़ती गई,भूख रोटी की घटती गई ।
 रोटी की फ़िक्र में जो ,कमाने निकला था कभी ।।
3
 कलम चली है बस कुछ ही शब्दों पर ,
लेखन को शब्दों में न बाँध सके कोई ।
 कलम पीड़ा भूखी सदा शब्दों   की ,
  शब्दों से पार पा सके न कभी कोई ।

4
भूख नही तो जग न होता ।
 तब कोई रिश्ता न होता ।
 हर रिश्ता जन्मा पीड़ा से,
 पीड़ा से मन भूखा होता ।

 5
 भूख नही तो पीड़ा कैसी ।
  हर रिश्ता हर दौलत कैसी ।
   जगती है भूख जब मन मे,
  तब रुकने की चाहत कैसी ।

6
 चलता है तू *निश्चल* भाव से,
 फिर मन यह पीड़ा है कैसे।
  भूख जो न होती शब्दों की ,
 फिर यह कलम उठती कैसे ।
  
7
भूख रहे अधरन पे ,प्यास रहे मन मे ।
 कलम कहे सब कुछ,बहुत कम शब्दन में ।।
  
  .... विवेक दुबे "निश्चल''....

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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