विषय ... भूख की पीड़ा
1-
वेदना उसकी बड़ी भारी थी ।
भूख जिसकी एक लाचारी थी ।
बीनता था जूठन वो बचपन ,
और निगाहें उसकी आभारी थीं ।
2-
भूख दौलत की बढ़ती गई,भूख रोटी की घटती गई ।
रोटी की फ़िक्र में जो ,कमाने निकला था कभी ।।
3
कलम चली है बस कुछ ही शब्दों पर ,
लेखन को शब्दों में न बाँध सके कोई ।
कलम पीड़ा भूखी सदा शब्दों की ,
शब्दों से पार पा सके न कभी कोई ।
4
भूख नही तो जग न होता ।
तब कोई रिश्ता न होता ।
हर रिश्ता जन्मा पीड़ा से,
पीड़ा से मन भूखा होता ।
5
भूख नही तो पीड़ा कैसी ।
हर रिश्ता हर दौलत कैसी ।
जगती है भूख जब मन मे,
तब रुकने की चाहत कैसी ।
6
चलता है तू *निश्चल* भाव से,
फिर मन यह पीड़ा है कैसे।
भूख जो न होती शब्दों की ,
फिर यह कलम उठती कैसे ।
7
भूख रहे अधरन पे ,प्यास रहे मन मे ।
कलम कहे सब कुछ,बहुत कम शब्दन में ।।
.... विवेक दुबे "निश्चल''....
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