आज शब्द बिके सत्ता के गलियारों में ।
आज कैसे ढूँढे सूरज को उजियारों में ।
अर्चन बंदन वो गठबंधन शब्दों सा ।
प्रणय मिलन वो शब्दों से शब्दों का ।
भावों के धूंघट में शब्द दुल्हन सा ,
हर काव्य रचा एक नव चिंतन का ।
कलम दरवान बनी दरवारों की ,
चलती है सिक्कों की टंकारों में ,
जो हिस्सा है इतिहास का ।
नही था वो कल आज सा ।
साधना थी वो शब्दों की,
नही था वो प्रयास आज सा ।
... *विवेक दुबे "निश्चल''*©...
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