शुक्रवार, 22 दिसंबर 2017

मन उपवन


कहता हैं मन कुछ कहता है 
 बहता है सरिता बन बहता है
 देता है शब्द सुधा देता है
 कर उन्मुक्त भाव से विचरण
 इस मन के निर्जन वन को
 सिंचित करता इस मन को
 शब्द सुधा के इस जल से 
 सिंचित करता मन मन से 
 भावों के इस सिंचन से 
 पुलकित यह मन उपवन 
       नहीं बंधा बंधानों में 
    निकल पहाड़ों से यह
     बस बहता मैदानों में
   बहते जा बस बहते जा 
  शब्द सुधा के कहते जा 
 सिंचित कर कण कण
 खिला खिला हो
  हर मन उपवन
    .....विवेक...

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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