कहता हैं मन कुछ कहता है
बहता है सरिता बन बहता है
देता है शब्द सुधा देता है
कर उन्मुक्त भाव से विचरण
इस मन के निर्जन वन को
सिंचित करता इस मन को
शब्द सुधा के इस जल से
सिंचित करता मन मन से
भावों के इस सिंचन से
पुलकित यह मन उपवन
नहीं बंधा बंधानों में
निकल पहाड़ों से यह
बस बहता मैदानों में
बहते जा बस बहते जा
शब्द सुधा के कहते जा
सिंचित कर कण कण
खिला खिला हो
हर मन उपवन
.....विवेक...
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