शनिवार, 23 दिसंबर 2017

उजाला


उजाला जब भी चला है,
 अंधेरों ने छला है 
 रोशनी की चाह में ,
सूरज तो जला ही जला है ।
  .... "निश्चल" विवेक दुबे ©....


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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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