कुछ शब्द छूटते
कुछ शब्द टूटते
फिर भी हम
शब्द कूटते
शब्दों में कुछ
रिश्ते ढूंढते
भावों से नाते
सींचते
बस शब्दों से
शब्द खींचते
अपनेपन के
बीज़ सींचते
अंकुरित हो कोई बीज
बन वृक्ष विशाल
कर जाये कमाल
हुए हम मालामाल
वृक्ष पर मीठे
फल आयें जब
पंक्षी डाल डाल
नीड़ बनाये फिर
हुए शब्द सार्थक तब
....विवेक...
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