शुक्रवार, 22 दिसंबर 2017

लौट आया मैं

लौट आया मैं अब अपने ही शहर में।
अज़नबी सा हूं मग़र अपने ही शहर में ।।
सुबह भी अचरज से घूरती मुझे ।
वो अब कोई गैर मानती मुझे ।।
शाम भी तार्रुफ़ से देखती मुझे ।
वो भी अज़नबी अब जानती मुझे ।।
 हवाएं भी पता पूछती हैं मुझसे मेरा।
परिंदे कहें अज़नबी कौन है बता जरा ।।
खोजता हूं उन राहों को ।
 फैलाऊ जहा अपनी बांहों को ।।
खोजूं मैं दर-ब-दर उन चाहों को ।
समेटने खोल दें जो अपनी बाँहों को ।।
 लौट आया हूं मैं अब अपने ही शहर में ।
 अज़नबी सा हूं मग़र अपने ही शहर में ।।
        .....विवेक......

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