माननीय पटल के समक्ष
*स्वच्छता पर एक छोटा सा प्रयास*
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पहले करें स्वच्छता हम मन भीतर कीचड़ की।
स्वच्छ आवरण से पहले स्वच्छ हों मन विचार।
हो जाएँ सुरक्षित मेरी माताएँ बहनें ,
बन जाए स्वच्छ यह मेरा देश समाज।
स्वच्छता नही कोई त्योहारों जैसी ,
यह है नित प्रति नित नया प्रयास ।
हर दिन कोशिश मेरी प्रथम यही ,
हो जाए मन हर कोना कोना साफ।
मेरे आचरण यदि रहे यही ।
निष्फ़ल है तब हर प्रयास ।
बदलूँ पहले खुद के मन को,
फिर आऊँ दुनियाँ के पास ।
कीट जमी कुटिलता मन अंदर ,
और बाहर है आभासी प्रकाश ।
मन साग़र गगन धरा नदियाँ सारी,
पहले अन्तर्मन कर लूँ साफ ।
....... *विवेक दुबे*©.....
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