रविवार, 1 अक्तूबर 2017

गांधी


हर रिश्वत के बनते गवाह गाँधी ।
सोचते होंगे अब गाँधी ।
क्यों छापा नोट पर ,
कैसी की यह नादानी ।
सत्य अहिंसा का मै पुजारी ,
मेरे ही सामने हो रही काला बाज़ारी ।
तुम तो बने घूम रहे सफ़ेद पौश ।
मुझे थाम रहे नकाव पोश ।
....विवेक दुबे ....

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