रविवार, 1 अक्तूबर 2017

दरख़्त


 टूटकर फिर उगते दरख़्त ।
  उग कर फिर टूटते दरख़्त ।।
          हर मुश्किल से जूझते दरख़्त ।
          आसमां को चूमते दरख़्त ।।
 सर उठाये झूमते दरख़्त ।
 सर झुकाये जमीं को चूमते दरख़्त ।।
         ज़मीन को न छोड़ते दरख़्त ।
         नहीं किसी को ढूंढते दरख़्त ।।
 नही किसी को छोड़ते दरख़्त ।
चाहतों की छांव से लुभाते दरख़्त ।।
       पवन के झोकें से गुनगुनाते दरख़्त ।
       कभी झूमते कभी गाते दरख़्त ।।
       ....विवेक....


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