नवाचार नया विधान कैसा ।
अचार में नए मसाले जैसा ।
नीतियाँ बही दशकों बूढ़ी,
पहना दी नई सुहाग चूड़ी ।
सजी दुल्हन सी वो वृद्धा ।
नवाचार से बँधा नया रिश्ता ।
खूब सैर सपाटे विदेशों में,
ब्याह हुआ पीहर से क्या रिश्ता ।
नैतिकता का भी भान नहीं।
अपनों का भी अब स्थान नहीं।
बिठा दिए बुजुर्ग सब कोने में ।
हम ही हैं अब हर कोने कोने में ।
..... विवेक दुबे©....
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