शुक्रवार, 6 अक्तूबर 2017

प्रीत







लालच लालसा चोरी,स्वार्थ बंधी सब डोरी ।
 छोड़ स्वार्थ हो जाए दुनियाँ कोरी की कोरी ।
 रच निस्वार्थ भाव से जीवन फिर तू अपना ,
 खेल श्याम सँग प्रेम प्रीत की तू तब होरी ।
  ...... विवेक दुबे©....

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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