हो रहे नैतिक पतन मूल्यों के ।
स्कूल खुले है धन मूल्यों के ।
अध्याय हटे नैतिक शिक्षा के ।
पाठ बस रहे पाश्चात शिक्षा के ।
अब पाठ पढ़ाते जिस विद्या से ।
चाकर बनते बस उस विद्या से।
जीते फिर सब धन लोलुपता से ।
दूर हुए अब सब मानवता से ।
हाय व्यवस्था हाय नितियाँ ।
ओढे चहरे सब नैतिकता के ।
चाट रहे सभ्य सभी नैतिकता।
प्राचीन धरोहर कीड़े दीमक के ।
...... विवेक दुबे©......
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