शनिवार, 7 अक्तूबर 2017

इंतज़ार


सितारे टिमटिमाते रहे शब-ए-इंतज़ार में।
 चाँद बे-ख़ौफ़ खिलखिलाता रहा ।
 रो पड़ी शबनम जमीं के आगोश में ।
 सहर भी न थी अब अपने होश में ।
 पूछा क्या हुआ जबाब एक आया ।
 तपता है सूरज पिघलते हैं हम ।
 हर बार इल्ज़ाम क्यों हम पर आया । 
 ज़माने ने शबनम को क्यों दबाया।
   ...... विवेक दुबे©.....

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