यह ख्वाब सम्हाले सम्हलते नही ।
कुछ प्रश्न ज़िंदगी के सुलझते नही ।
जीता हूँ मैं वाखूबी अपने अंदाज में ,
दुनिया के अंदाज़ से मैं चलता नही ।
यूँ तो भीड़ बहुत है इस दुनियाँ में ,
ज़माने की भीड़ संग मैं चलता नही ।
सम्हल तू खुद ऐ "विवेक" अपने आप से ,
किसी के सम्हाले कोई सम्हलता नही ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
कुछ प्रश्न ज़िंदगी के सुलझते नही ।
जीता हूँ मैं वाखूबी अपने अंदाज में ,
दुनिया के अंदाज़ से मैं चलता नही ।
यूँ तो भीड़ बहुत है इस दुनियाँ में ,
ज़माने की भीड़ संग मैं चलता नही ।
सम्हल तू खुद ऐ "विवेक" अपने आप से ,
किसी के सम्हाले कोई सम्हलता नही ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
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