रविवार, 25 मार्च 2018

सोया हूँ ख्वाबो की ख़ातिर

सोया हूँ ख़्वाबों की ख़ातिर ,
मुझे नींद से न जगाना तुम।
         आना हो जो मुझसे मिलने ,
          ख़्वाबों में आ जाना तुम ।

    यह दुनियाँ ,नही हक़ीक़त । 
    यह दुनियां एक फ़साना है  । 
             ठहरा नही यहाँ कभी कोई,
             यहाँ तो आना और जाना है ।

 ख़्वाबों की दुनियाँ ही , सच्ची  झूठी है ।
 यह दुनियां तो     ,   झूठी सी सच्ची है ।

  ख़्वाबों में असल तसल्ली होती है ।
  दुनियां में ,तल्ख़ तसल्ली होती है ।
         ख़्वाबों में ही , हँस रो लेते हम।
         ख़्वाबों में हर बात बयां होती है ।


 इस दुनियां में तो , उसकी मर्ज़ी है ।
 रोने हँसने की,उसकी ख़ुदगर्ज़ी है।
       यहाँ रोते हैं ,      उसकी मर्ज़ी से ,
       हँसने में भी,   उसकी ख़ुदगर्ज़ी है ।
  
  जी न सकें जो ,यहाँ जी ते जी,
   मर कर वो, यहाँ ज़िंदा रहते हैं।
        इस जी ते जी ,मरकर जी ने से,
        ख़्वाबों की दुनियां ,कितनी अच्छी है।

    मौत नहीं जहाँ दूर तलक ,
     ज़िंदगी इनमें बस मिलती है।

    खोया हूँ ख़्वाबों की ख़ातिर,
    मुझे नींद से न जगाना तुम ।
           आना हो जो मुझसे मिलने,
           मेरे ख़्वाबों में आ जाना तुम।

   ....विवेक दुबे"निश्चल"@...

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