यूँ वक़्त से वक़्त की बात चली है ।
छूटती ज़िंदगी की अधूरी गली है ।
चले थे जिस सफ़र में राह पे कभी ,
ये राह फिर उस राह मुड़ चली है ।
खाई थी शिकस्त वक़्त के हाथों कभी ,
वक़्त तुझसे शिक़ायत अब भी नही है ।
वक़्त तो संग दिल भी है बहुत मगर,
वक़्त को अदावत भी मुझसे नही है ।
चलता हूँ जिस राह पर अब मैं ,
वो राह नई मेरी अब भी नही है ।
हो न हो मुक़ाम कोई इस राह का ,
मंज़िल तो मैंने आज भी गढ़ि नही है ।
यूँ वक़्त से वक़्त की ....
....विवेक दुबे निश्चल@...
छूटती ज़िंदगी की अधूरी गली है ।
चले थे जिस सफ़र में राह पे कभी ,
ये राह फिर उस राह मुड़ चली है ।
खाई थी शिकस्त वक़्त के हाथों कभी ,
वक़्त तुझसे शिक़ायत अब भी नही है ।
वक़्त तो संग दिल भी है बहुत मगर,
वक़्त को अदावत भी मुझसे नही है ।
चलता हूँ जिस राह पर अब मैं ,
वो राह नई मेरी अब भी नही है ।
हो न हो मुक़ाम कोई इस राह का ,
मंज़िल तो मैंने आज भी गढ़ि नही है ।
यूँ वक़्त से वक़्त की ....
....विवेक दुबे निश्चल@...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें