गुरुवार, 29 मार्च 2018

वक़्त से वक़्त की बात

यूँ वक़्त से वक़्त की बात चली है ।
 छूटती ज़िंदगी की अधूरी गली है ।

 चले थे जिस सफ़र में राह पे कभी ,
 ये राह फिर उस राह मुड़ चली है ।

 खाई थी शिकस्त वक़्त के हाथों कभी ,
 वक़्त तुझसे शिक़ायत अब भी नही है ।

 वक़्त तो संग दिल भी है बहुत मगर,
 वक़्त को अदावत भी मुझसे नही है ।

 चलता हूँ जिस राह पर अब मैं ,
 वो राह नई मेरी अब भी नही है ।

 हो न हो मुक़ाम कोई इस राह का ,
 मंज़िल तो मैंने आज भी गढ़ि नही है ।

 यूँ वक़्त से वक़्त की ....

....विवेक दुबे निश्चल@...

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