सुरमई शाम मखमली उजाले से ।
निगाहों से निगाहों के हवाले से ।
बे-खुदी के आलम नजारों में ,
हालात से खुद को सम्हाले से ।
निग़ाह में अश्क़ अपने छुपाकर ,
आए नजर उजले सितारों से ।
वो क़तरे शबनम जमीं पे ,
आरजू अश्क़ की पाले से ।
हों जज़्ब पहले जमीं में ,
कदम रौंद क्यों डाले से ।
क़दम क्यों रौंद डाले से ।
.... विवेक दुबे "निश्चल"@..
निगाहों से निगाहों के हवाले से ।
बे-खुदी के आलम नजारों में ,
हालात से खुद को सम्हाले से ।
निग़ाह में अश्क़ अपने छुपाकर ,
आए नजर उजले सितारों से ।
वो क़तरे शबनम जमीं पे ,
आरजू अश्क़ की पाले से ।
हों जज़्ब पहले जमीं में ,
कदम रौंद क्यों डाले से ।
क़दम क्यों रौंद डाले से ।
.... विवेक दुबे "निश्चल"@..
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