शुक्रवार, 30 मार्च 2018

बिन चेहरों के

   बिन चेहरों के कभी  ,
   पहचान नही होती ।

   यह सरल बहुत जिंदगी  ,
   पर आसान नही होती ।

    रवि बादल में छुपने से ,
    कभी साँझ नही होती ।

    छूकर शिखर हिमालय का ,
     तृष्णा कभी तमाम नही होती ।

     पाता है मंजिल बस वो ही ,
    राहों से पहचान नही होती ।

    चलता है मंजिल की खातिर ,
     निग़ाह मगर आम नही होती ।
        बिन चेहरों के ...
..
.. विवेक दुबे"निश्चल"@...

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