गुरुवार, 29 मार्च 2018

जिंदगी भी एक किताब है

ज़िंदगी भी , एक किताब है ।
   दो लाइन का, बस हिसाब है ।
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कुछ लिखें अपना , कुछ कहें अपना।
 सत्य नही ज़ीवन , ज़ीवन एक सपना।
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   ज़ीवन की बस , इतनी परिभाषा है। 
    ज़ीवन तो बस , कटता ही जाता है। 
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पतझड़ नही वसंत हो ज़िंदगी ।
 अन्त नही आरम्भ हो ज़िंदगी ।
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लाभ हानि के खाते , लिखते सब ।
 लोग नही मिलते ,  बे-मतलब अब ।
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होता रहता हरदम , कुछ न कुछ।
 वक़्त सीखाता हरदम , कुछ न कुछ।
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यह सफर विकल्प से , संकल्प तक का ।
 लगता सारा जीवन , सफर दो पग का।
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तपता रहा उम्र भर , कुंदन सा हो गया ।
 भाया न दुनियाँ को , खुद भी खो गया ।
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पथिक थक जाएगा ,मंजिल पा जाएगा ।
 छोड़े पद चिन्हों का,इतिहास बनाएगा ।
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..... विवेक दुबे"निश्चल"@...

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