ज़िंदगी कटती रही अरमां हँसते रहे ।
उम्र गुजरती रही आराम घटते रहे ।
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हालात बयां क्या करें अब आज के ।
अपने आगाज की सज़ा भुगतते रहे ।
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न कुछ ठीक रहा ,सब बिगड़ सा चला ।
हारने भी लगे ,कल जो जीतते ही रहे ।
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जहां आए थे सुबह , साँझ लौटना पड़ा ।
सफ़र नही उम्र भर का यह सोचते ही रहे ।
..... विवेक दुबे "निश्चल"@...
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